Rathore Rajput kuldevi

Rathore Rajput kuldevi



Rathore Rajput kuldevi


राजस्थान के राठौर राजपूतो की कुलदेवी माँ चक्रेश्वरी , नागणेचा ,नागणेच्या नाम से विख्यात है।  माँ नागणेचा का मंदिर राजस्थान के जोधपुर जिले के नागाणा गांव में स्थित है। यह मंदिर जोधपुर जिले से 96 किलोमीटर दूर है।

पुराणिक गाथाओ और इतिहासिक  ग्रथों के अनुसार मारवाड़ राज्य के संस्थापक और राठौर राजवंश के आदि पुरुष राव सीहा जी के पौत्र राव धुहड़ जी ने यहाँ सबसे पहले माँ नागणेचा की मूर्ति स्थापित की और यहाँ मंदिर बनवाया। 

राव धुहड़ जी दक्षिण के कोंकण में जाकर माँ चक्रेश्वरी की मूर्ति लेकर आये थे। और उन्होंने नागाणा गांव में स्थापित किया। जिससे माँ चक्रेश्वरी माँ नागणेचा के रूप में विख्यात हुई। अष्टदस भुजाओ वाली माँ नागणेचा महिषासुरमर्दनी का रूप है। बाज या चील इनका प्रतीक चिन्ह है। 

यह चिन्ह हमेशा मारवाड़ ,बीकानेर ,किशनगढ़ रियासतो के राजचिन्ह के रूप में देखा जाता है। माँ नागणेचा मारवाड़ राज्य की कुलदेवी है। माँ नागणेचा का निवाश स्थान नीम का वृक्ष है जिसके कारण जोधपुर में नीम वृक्ष का बड़ा आदर किया जाता है। और इनकी लकड़िया उपयोग में नहीं लाई जाती है। 

राठोड़ राजवंश की कुलदेवी 



Rathore Rajput kuldevi History


प्रचलित कथाओ के अनुसार राव धुहड़ जी एक बार अपने ननिहाल गए। वहां उन्होंने अपने मामा के गोलमटोल बड़े से पेट को देख कर हसने लगे। उनको हॅसते देखकर उनके मामा को गुस्सा आ गया ,उन्होंने उनसे कहा -मेरे मोटे पेट को देखकर तुम हस रहे हो लेकिन तुम्हारे राजवंश में कुलदेवी के न होने पर पूरा संसार हस रहा है। इसलिए तुम्हारा राज्य और ठिकाना नहीं बन पा रहा है,मामा की यह सब कड़वी बाते लेकिन सत्य बाते सुनकर राव  धुहड़ जी ने निश्चय किया की मैं अपनी कुलदेवी की मूर्ति लेकर आऊंगा।

 वह अपने पिता जी अस्थान जी के पास आ गए। लेकिन उनको यह तो पता ही नहीं था की उनकी कुलदेवी कौन है ?वह कहा है ? और उनकी मूर्ति कैसे लाई जा सकती है। राव धुहड़ जी ने निश्चय किया की वह तपस्या कर के उन्हें प्रसन्य करेंगे। 

राव धुहड़ जी एक बार घर से निकल कर जंगल में देवी की तपस्या करने चले गए ,वहाँ उन्होंने देवी की घोर तपस्या की उनकी तपस्या और बालहठ के कारण देवी ने उन्हें दर्शन दिए। राव धुहड़ जी ने देवी से पूछा की उनकी कुलदेवी कहा है। इस बातो को सुनकर माँ ने उन्हें बताया की वत्स तुम्हारी कुलदेवी माँ चक्रेश्वरी है ,वह  कन्नौज में है ,तुम अभी छोटे हो ,बड़े होने पर तुम वह जा पाओगे ,अभी तुम्हे प्रतीक्षा करनी होगी। 

राव धुहड़ जी ने माता की आज्ञा का पालन किया। और इसके बाद उनके पिता अस्थान जी के सुवर्गवास के पश्चात वे खेड़ के शासक बने। और एक दिन वे अपने राजपुरोहित के साथ कन्नौज के लिए रवाना हुए। वहां उन्हें एक ऋषि मिले ,उन ऋषि ने उन्हें माँ चक्रेश्वरी की मूर्ति के दर्शन करवाए ,और बताया की यही आपकी कुलदेवी हैं ,आप इन्हे ले जा सकते है।  

जैसे ही उन्होंने मूर्ति को स्पर्श किया तभी देवी की आवाज गुंजी , रुको वत्स मैं ऐसे तुम्हारे साथ नहीं चलु गी , मैं एक पखींनी {पक्षनी }के रूप में तुम्हारे साथ चलुगी। राव धुहड़ जी ने माँ से कहा की मुझे कैसे विस्वास होगा की आप मेरे साथ चल रही है। तब कुलदेवी ने बताया की मैं पक्षानि के रूप में तुम्हारे साथ साथ चलुगी जब तक यह पंक्षीनी तुम्हारे साथ चलती रहेगी ,तब तक तुम यह समझना तुम्हारी कुलदेवी तुम्हारे साथ चल रही है। लेकिन एक बात ध्यान देना की बीच में कही रुकना मत। 

राव धुहड़ जी ने माँ कुलदेवी का आदेश सुन कर वैसे ही किया। धुहड़ जी कन्नौज से चलते चलते नागाणा गांव तक पहुंच गए वहा वह थकान के कारण रुक गए। वहा एक नीम का वृक्ष था ,उसकी छाया में उन्हें नींद आ गयी वह वही सो गए। जब उनकी नींद खुली तो वह देखते है की पक्षनि नीम के पेड़ पर है।

 जब वहा से चलने के लिए तैयार होते है तभी कुलदेवी की आवाज गूजती है और कुलदेवी बोलती है की हे पुत्र मैंने तुम्हे बताया था की जहा तुम रुक जाओगे मै भी वह रुक जाऊगी। अब मैं यहाँ से आगे नहीं जपायगी। धुहड़ जी ने कुलदेवी के आदेश को माना। और कहा की माँ इसके आगे मेरे लिए क्या आदेश है ,कुलदेवी ने उन्हें बताया की सवा पहर सूरज उगने से पहले तुम अपना घोडा जहा तक संभव हो सके इस क्षेत्र में घुमाना यही क्षेत्र मेरा निवास स्थल होगा। और मै मूर्ति रूप में प्रकट होऊगी। और तुम इस बात का ख्याल रखना की गांव की कोई भी ग्वालिन गायो को न हाके ,अन्यथा मेरी मूर्ति प्रकट होते होते रुक जाएगी। 

कुलदेवी की आज्ञा के अनुसार धुहड़ जी सुबह जल्दी उठ कर अपने घोड़े को चारो दिशा में घुमाया ,और सब ग्वालिन से कहा की कोई भी अपनी गायो को न हाके ,और अस्वासन दिया की यदि तुम्हारी गाय कही भी जाती है तो उसे मैं लेकर आउगा। इतना करने के पश्चात् पर्वत पर गर्जना होती है ,और कुलदेवी मूर्ति रूप में प्रकट हो रही होती है ,वैसे ही किसी ग्वालिन ने भूलवश गाय हाक दी ,जिसके कारण कुलदेवी की मूर्ति पूर्ण रूप से प्रकट नहीं हो पाई। और वह आधी ही प्रकट हो पाई। और यह सब घटना को धुहड़ जी ने कुलदेवी की कृपा जान कर उन्हें प्रणाम किया। और उस स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया ,इसके बाद माँ चक्रेश्वरी, माँ नागणेचा के रूप में चारो ओर विख्यात हुई। 

और मारवाड़ में राठौर राजवंश की कुलदेवी माँ नागणेचा कहलाई। 


माँ नागणेचा स्थित गांव नागाणा में हर वर्ष यहाँ मेला लगता है ,नागणेचा माँ का मंदिर जोधपुर ,बीकानेर ,आदि किलो में भी है ,राठौर राजाओ ने अपने किलो में ही अपनी कुलदेवी मूर्ति बनवाई जिससे वह प्रतिदिन अपनी कुलदेवी की भक्ति व उनके दर्शन कर सके और उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सके। 

बीकानेर ने माँ नागणेचा 

बीकानेर में माँ नागणेचा माँ मंदिर बीकानेर से 2 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर बना हुआ हैबीकानेर के संस्थापक महाराजा बीका ने यह मूर्ति जोधपुर से लाई थी। बीकानेर में माँ का मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है जिसके अंदर माँ नागणेचा चांदी की मूर्ति रूप में बिराजमान है।

जय माँ नागणेचा की। 
                                      






Rathore Rajput kuldevi Rathore Rajput kuldevi Reviewed by Arnab Kumar Das on April 12, 2020 Rating: 5

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