क्षत्रिय राजपूतों के रीति रिवाज

क्षत्रिय राजपूतों के रीति रिवाज





क्षत्रिय राजपूतों के रीति रिवाज

जय क्षात्र धर्म :-


(1.) ठाकुर की उपाधि अपने नाम के आगे सिर्फ उस दशा में आप लगा सकते हैं जब आप के बाबा जी और पिता जी जीवित ना हों और आप अपने घर के मुखिया हों।

(2.) कुंवर की उपाधि अपने नाम के आगे आप सिर्फ उस दशा में लगा सकते हैं जब आप के पिता तो जीवित हों पर दादा नहीं हों।

(3.) भँवर की उपाधि अपने नाम के आगे आप उस दशा में लगाते हैं जब आप के बाबा जी और पिता जी दोनों जीवित हों।

(4.) टँवर की उपाधि अपने नाम के आगे आप उस दशा में लगाते हैं जब आप के परदादा जीवित हों।

(5.) अगर आप के पिता जी /दादाजी /बाबाजी अभी बिराज रहे है तो कोई भी शादी ,फंक्शन, मंदिर आदि में आप के कभी भी लम्बा तिलक और चावल नहीं लगेगा, सिर्फ एक छोटा गोल टिका लगेगा।

(6.) जब सिर पर साफा बंधा होता है तो तिलक करते समय पीछे हाथ नही रखा जाता, हां ,सर के पीछे हाथ तभी रखते है जब आप नंगे सर हों तो।

(7.) पिता का पहना हुआ साफा आप नहीं पहन सकते।

(8.) सर पे बंधा साफा , कभी भी किसी भी परिस्थिति में किसी के भी चरणों में नहीं रखा जाता चाहे वो आपका सगा संबंधी या रिश्तेदार ही क्यों ना हो।

(8.) मटिया, गहरा हरा, नीला, सफेद ये शोक के साफे है। 

(8.) हर कुल के, ठिकाने के, यहाँ clan/subclan के इष्ट देवता होते हैं, जो की जायदातर महादेव,कृष्ण या विष्णु के अनेक रूपों में से होते थे, और उनके नाम से ही गाँववाले या नाते-रिश्तेदार आप का अभिवादन, greet करते थे, जैसे की जय महादेव जी की, जय रघुनाथ जी की, जय चारभुजाजी की, जय गोपीनाथ जी की,उदाहरण के लिये क्षत्रिय राजपूत शाखा रघुवंशी के इष्ट देव महादेव हैं तो उन्हें अभिवादन में जय महादेव जी की करना चाहिये।

(9.) आज भी कई घरों में तलवार को म्यान से निकालने नहीं देते, क्योंकि तलवार की एक परंपरा है - अगर वो म्यान से बाहर आई तो या तो उंसके खून लगेगा, या लोहे पर बजेगी, इसलिए आज भी कभी अगर तलवार म्यान से निकालते भी है तो उसको लोहे पर बजा कर ही फिर से म्यान में डालते है।

(10.) आज भी परिवार के सभी सदस्य जब भोजन के लिये साथ बैठते हैं तो घर का वरिष्ठ सदस्य पहला निवाला ग्रहण करेगा, या वो अन्य को भोजन प्रारंभ करने की आज्ञा देगा।

(11.) समान गौत्र में विवाह पूर्णतः निषेद होता है, समान गौत्र के सब भाई, बहन होते हैं।

(12.) अटा सटा की प्रथा पूर्णतः वर्जित है।

(13.) कुलदेवी के मंदिर में हाजरी आवश्यक है, विवाह के पश्चात और कुलवृद्धि के बाद।

(14.) घर आया मेहमान बिना भोजन, पानी, या अल्पाहार ग्रहण किये नहीं जाने देना चाहिये।

(15.) अंतरजातीय विवाह पूर्णतः वर्जित हैं, शुद्धरक्त कायम रहे।

(16.) मातृ शक्ति की राय और स्थान परिवार में सदैव ऊंचा और मान्य होता है।

(17.) हर समय हर हाल क्षात्र धर्म का पालन करना और उस पर अडिग रहना।

पूर्वजो द्वारा प्राप्त संस्कार और संस्कृति को बनाये रखना और इसे कभी नहीं मिटने देना ,अपने आने वाली पीडियो को अच्छे संस्कार और क्षत्रिय धर्म के बारे में अवगत करवाना।

अपने पूर्वजो के बलिदानो को न भूलना और उनके जैसे बनने का प्रयास निरंतर करते रहना।



जय भवानी जय राजपूताना।

राजा रामचंद्र की जय | 
क्षत्रिय राजपूतों के रीति रिवाज क्षत्रिय राजपूतों के रीति रिवाज Reviewed by Arnab Kumar Das on April 12, 2020 Rating: 5

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