Pabuji Rathore History In Hindi
पाबूजी राठौड़
पाबूजी राठौड़ जीवनी
पाबूजी राठौड़ -
राव धूहड़ के भाई धांधल थे, जिनकी बड़ी रानी से बूड़ाजी हुए और दूसरी रानी से पाबूजी का जन्म हुआ। पाबूजी राठौड़ में वीरभाव, वचन पालन, देश रक्षा और शौर्य कूट-कूटकर भरे थे। पाबूजी राठौड़ को लक्ष्मण जी का अवतार भी माना जाता है।
पाबूजी राठौड़ का इतिहास | Pabuji Rathore History
पाबूजी के पिता धांधलजी का कोलू गांव के आसपास के क्षेत्र पर राज था, नागौर के कुछ क्षेत्र पर भी उनका अधिकार था। वहीं नागौर के पास भी जायल क्षेत्र पर जींदराव खींची का राज्य था। एक बार जींदराव खींची ने एक चारण परिवार से उनकी एक बहुत लाजवाब घोड़ी जिसका नाम केसर कालवी था, उसकी मांग की पर चारण परिवार ने देने से मना कर दिया।
परन्तु जब उस केसर कालवी घोड़ी को पाबूजी राठौड़ ने चारण परिवार से मांगी तब चारण परिवार ने वह घोड़ी पाबूजी राठौड़ को दे दी परन्तु यह वचन लिया की अगर जींदराव खींची नाराज हुआ और चारण परिवार की गायों को ले गया तब पाबूजी चारण परिवार की गायों की रक्षा करेंगे। चारण परिवार द्वारा घोड़ी को पाबूजी राठौड़ को देने से जींदराव खींची नाराज हो गया और उसके मन में बदले की आग जलती रही फिर एक दिन मौका पाकर जींदराव खींची ने चारणों की गायों को घेरकर ले गया।
इस समय पाबूजी राठौड़ बारात सहित विवाह करने हेतु अमरकोट गये हुए थे और उन्होंने विवाह के सात फेरों में से चार फेरे ही लिए थे और तभी उनको सूचना मिली की जींदराव खींची चारण परिवार की गायों को ले गया है, उसी समय अपने वचन का पालन करने पाबूजी राठौड़ विवाह के फेरों में से उठकर जींदराव खींची से गायों की रक्षा करने निकल पड़े।
पाबूजी राठौड़ ने गायों को तो छुड़वा लिया परंतु युद्ध चलता रहा, युद्ध में पाबूजी राठौड़ व बूड़ाजी राठौड़ दोनों ने वीरगति प्राप्त की और अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया। पाबूजी ने विवाह मंडप में सात मे से चार फेरे ही लिए थे, इसलिए राजपूतों के विवाह में चार फेरे ही लेने का रिवाज है। पाबूजी राठौड़ की पूजा राजस्थान, गुजरात और मालवा के गांव-गांव में होती है।
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