चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार

              चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार


जय राजपूताना जय माँ भवानी होकम।



चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार एक ऐसे सम्राट थे , जिनके काल में भारत सोने की चिड़िया था , इसके राज्य में प्रजा खुशहाल थी , सम्राट विक्रमादित्य एक न्यायप्रिय सम्राट थे , जिनका राज्य धन धन्य ,सम्पन्यता से परिपूर्ण था। इन्ही के काल को स्वर्णिम काल कहा जाता है ,सम्राट विक्रमादित्य ने ही विक्रम सावंत चलाया था।

उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन परमार ,जिनकी तीन संताने थी जिनमे से सबसे बड़ी मैनावती ,दूसरे भर्तहरि ,और तीसरे सम्राट विक्रमादित्य थे , महाराजा ने अपनी बेटी की शादी धारानगरी के पदमसैन के साथ कर दी। जिनकी एक संतान हुई उसका नाम गोपीचंद था ,आगे चल कर गोपीचंद ने श्री ज्वालेश्वर नाथ जी से दीक्षा ले कर वे जंगल तपस्या करने चले गए ,फिर उनकी माँ मैनावती ने भी गुरु गोरख नाथजी  से दीक्षा ली।

आज हमारा भारत और भारत की संस्कृति सम्राट विक्रमादित्य के कारण ही अस्तित्व में है ,अभी तक हमारा सनातन धर्म बचा हुआ है।




महाराजा गन्धर्वसैन के बाद महाराजा भर्तहरि उज्जैन के सम्राट बने लेकिन उनका मन राजकाज में  नहीं लगता था , उन्होंने गुरु गोरख नाथ जी से दीक्षा ली। उनका मन प्रभु की भक्ति में लीन रहता था , इसलिए उन्होंने सारा राजपाट त्याग अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को देकर वे जंगल में भगवान की तपस्या करने चले गए।

इसके बाद सम्राट विक्रमादित्य ने गुरुगोरखनाथ जी से दीक्षा ले कर राजपाट संभाला। दीक्षा के बाद सम्राट विक्रमादित्य से कुशल तरीके से राज्य का निवाहन किया।  आज सम्राट विक्रमादित्य के कारण ही सनातन धर्म और संस्कृति बची हुई है।

सम्राट अशोक ने बौध्द धर्म अपना लिए था ,और इसके बाद उन्होंने 25 साल इस धर्म में रह कर राज किया। उस समय सनातन धर्म ख़त्म होता जा रहा था ,हर जगह बौद्ध और जैन हो गए थे।

उस समय रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथ खो गए थे ,सम्राट ने ही इन्हे पुनः खोज कर इन्हे स्थापित किया। उन्होंने शिव और विष्णु के कई मंदिर बनवाये। उनके नौ रत्नो में से एक कालिदास ने 'अभिज्ञान शाकुंतलम ' की रचना की जिसमे भारत का इतिहास है , जिसके कारण हमारा भारत का इतिहास आज तक जीवित है ,वरना हम अपने भारत के इतिहास को जान ही नहीं पाते , और भगवान राम और कृष्ण के बारे में हम जान ही नहीं पाते ,

सम्राट विक्रमादित्य ने न केवल सनातन धर्म की रक्षा की अपितु भारत को आर्धिक तोर पर सोने की चिड़िया बनाया , विक्रमादित्य के काल में भारत का कपडा , विदेशी व्यापारी सोने के वजन से खरीदते थे। इनके काल में ही सोने के सिक्के चला करते थे।




सम्राट विक्रमदित्य के काल को भारत का स्वर्णिम काल कहा जाता है , सम्राट विक्रमादित्य अपनी उदारता ,न्यायप्रिय शासन ,साहस ,और विद्वानों के संरक्षण के लिए उन्हें जाना जाता  है , सम्राट विक्रमदित्य ने न्यायप्रियता ,कुशल शासन से प्रजा का पालन किया ,उनके राज्य में प्रजा में सम्पनता का परिवेश था ,प्रजा खुशहाल थी।

सम्राट विक्रमादित्य के न्याय शासन प्रणाली ऐसी थी की उनका न्याय हर जगह विख्यात था ,जिनसे न्याय की उम्मीद लेकर स्वयं देवता भी आते थे। सम्राट विक्रमदित्य की कई गाथाये भी है ,जिसमे सिंघासन बत्तीसी ,बेताल पचीसी ,आदि है।


राजा रामचंद्र की जय हो।
जय भवानी जय राजपुताना।

चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य परमार Reviewed by Arnab Kumar Das on August 30, 2020 Rating: 5

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